
“शासन के आदेशों को ठेंगा: NIM में संविदा नियुक्तियों में मनमानी और भ्रष्टाचार”
उत्तरकाशी स्थित नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (NIM), जो भारत का एक प्रमुख पर्वतारोहण प्रशिक्षण संस्थान है, आज प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ता नजर आ रहा है। जिस संस्थान की नींव राष्ट्रीय गौरव और युवाओं को पर्वतारोहण में प्रशिक्षित करने के उद्देश्य से रखी गई थी, आज वहां शासनादेशों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।
उत्तराखंड शासन द्वारा 27 अप्रैल 2018 को जारी आदेश में स्पष्ट किया गया था कि किसी भी विभाग में बिना शासन की स्वीकृति के संविदा या आउटसोर्स नियुक्तियां नहीं की जा सकतीं, और यदि की जाती हैं तो संबंधित अधिकारी के वेतन या पेंशन से भुगतान किया जाएगा। इसके बावजूद, NIM के उच्च अधिकारियों ने इन आदेशों को नजरअंदाज करते हुए अपने ‘चहेतों’ को मनमाने ढंग से संविदा नियुक्तियां दे दीं।
14 नवंबर 2018 को एक ही दिन में 13 लोगों की नियुक्ति संविदा पर कर दी गई, वो भी बिना किसी निविदा आमंत्रण के। जबकि इससे पहले सचिव डॉ. भूपिंदर कौर औलख द्वारा 22 जनवरी 2018 को सभी विभागीय संविदा भर्तियों पर पूरी तरह रोक लगाने का आदेश जारी किया जा चुका था। इसके बावजूद यह संस्थान मनमाने तरीके से नियुक्तियां करता रहा, और आज भी वह सिलसिला थमा नहीं है।
न केवल नियमों की अवहेलना हुई, बल्कि नियुक्त कर्मियों को नियुक्ति पत्र तक नहीं दिए गए, जो साफ दर्शाता है कि प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही की भारी कमी है। 2018, 2020, 2021, और 2022 में की गई संविदा नियुक्तियों में से किसी में भी शासनादेश का पालन नहीं किया गया, न ही किसी रजिस्ट्रार या उच्च अधिकारी की ओर से जवाबदेही तय की गई।
और बात यहीं खत्म नहीं होती—संस्थान के भीतर एक कथित ‘नकाबपोश चेहरा’ भी चर्चा में है, जिसे पर्दे के पीछे रहते हुए 50-60 हजार रुपए मासिक वेतन, सरकारी आवास, और अन्य सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं। यह व्यक्ति किसी आधिकारिक पद पर नहीं है, फिर भी संस्थान की तमाम गतिविधियों और कागजी कार्रवाइयों को नियंत्रित करता है, जैसे वह संस्थान का असली संचालक हो।
यह सत्ता के दुरुपयोग और पारदर्शिता की घोर कमी का स्पष्ट उदाहरण है। शासन के स्पष्ट आदेशों के बावजूद जब संस्थान के अधिकारी ही खुलेआम नियम तोड़ते हैं, तो इससे ना केवल संस्थान की साख को चोट पहुंचती है, बल्कि राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था पर भी सवाल खड़े होते हैं।
प्रदेश पहले ही UKSSSC पेपर लीक जैसे घोटालों से जूझ रहा है, और युवा वर्ग लगातार सड़कों पर उतरकर CBI जांच की मांग कर रहा है। ऐसे में NIM जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में इस तरह की भर्ती घोटाले और वित्तीय अनियमितताएं राज्य सरकार की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े करती हैं।
नेहरू पर्वतारोहण संस्थान का ये पूरा मामला केवल प्रशासनिक लापरवाही नहीं, बल्कि सुनियोजित भ्रष्टाचार की ओर संकेत करता है। जब शासनादेशों की खुलेआम अनदेखी की जाती है और संस्थान के अंदर छिपे चेहरे संस्थान की गरिमा को गिराते हैं, तो आवश्यक हो जाता है कि सरकार तत्काल संज्ञान ले और स्वतंत्र जांच कराकर दोषियों को जवाबदेह बनाए।
अगर समय रहते कार्रवाई नहीं हुई, तो यह संस्थान अपने गौरवशाली अतीत को खो देगा और भ्रष्टाचार के गर्त में चला जाएगा — और इसका खामियाजा न केवल संस्थान को, बल्कि प्रदेश के युवाओं और देश को भी भुगतना पड़ेगा।