उत्तरकाशी : रक्षा सूत्र आंदोलन के संयोजक सुरेश भाई ने कहा कि राजनैतिक दलों के घोषणा पत्रों में स्पष्ट सोच का बड़ा अभाव है। जबकि चुनाव जीतने के बाद अधिकांश नेता जनसेवक की स्थिति जनता के मालिक की हो जाती है। जो इस पहाड़ी राज्य के लिए बेहद ही चिंतनीय है।
सुरेश भाई ने कहा कि उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के बाद किसी भी राजनैतिक दल ने आमजन के साथ मिलकर ऐसा प्रयास नहीं किया है कि वे कैसा उत्तराखण्ड चाहते हैं। किस तरह से आमजन के जीवन एवं जीविका सुरक्षित रह सकती है। कैसे राज्य के नौकरशाह, नेता मिलकर आमजन के द्वार पर जाकर उनके समस्याओं को सुने और समाधान करें। इस पर कोई राजनैतिक संस्कृति नहीं बनाई गई है। यह जरूर है कि चुनाव जीतने के बाद कुछ बड़े नेता, मंत्री, मुख्यमंत्री हो जाते हैं और अन्य नेता अपने ही दलों के कार्यालयों मे जाकर लाल बत्ती के लिए धरना प्रदर्शन करते हैं। उन्होंने कहा कि अपनी विधायक निधि तक सीमित जनप्रतिनिधि सरकार की सभी योजनाओं की मॉनिटरिंग नहीं कर पाते हैं। जिसके कारण शेष विभागों में भ्रष्टाचार की असीमित गुंजाइशें बढ़ जाती है। विकास योजनाओं में नहर, सड़क, पुल, भवन आदि निर्माण में सरकारी विभागों में खुले आम 30 प्रतिशत से अधिक कमीशन लिया जा रहा है। इससे हो रहे गुणवत्ता विहीन निर्माण के कारण देश की सम्पत्ति की बर्बादी हो रही है। इसी तरह एपीएल और बीपीएल परिवारों का पुनः सर्वेक्षण की आवश्यकता है, जिस पर चुनाव के समय उम्मीदवारों को जनता के सामने अपनी बात रखनी चाहिए।उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों की राजनीतिक संस्कृति को देखकर आमजन भी तमाशबीन हो रखे हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में छोटे किसानों की आपदा में जिस तरह से जमीन, आवास, जंगल, रास्ते, नदियां, पहाड़ बर्बाद हो रहे हैं, उनको बचाने के राजनीतिक प्रयास भी कम्पनियों के माध्यम से हो रहे हैं।