Uncategorized

अब उर्दू अनुवादक सवालों के घेरे में

Listen to this article

विधान सभा में भाई भतीजावाद के तहत हुई नौकरियां और यूकेएसएसएससी में पेपर लीक मामला पहले ही भाजपा सरकार के गले की फांस बना हुआ हैं। इस बीच एक और मामला चर्चाओं में आया है, जो उर्दू अनुवादकों से जुड़ा है।

23 साल से सेवा दे रहे यह कर्मचारी सवालों के घेरे में आ गए हैं।तो हैरानी की बात यह है कि यह पूरा मामला आरटीआई एक्टिविस्ट एडवोकेट विकेश नेगी ने विभाग से सूचना प्राप्त करने के आधार पर उठाया है। यानी प्रदेश के एक नहीं बल्कि कई विभागों में काम कर रहे इन उर्दू अनुवादकों को लेकर विभाग में पूरी जानकारी होने के बाद भी किसी भी विभाग ने ना तो इनकी तैनाती की स्थिति को स्पष्ट किया है और ना ही इनकी नियुक्ति को गलत ठहराते हुए कोई कार्रवाई की है।

 

आरटीआई एक्टिविस्ट एडवोकेट विकेश नेगी ने दावा किया है कि साल 1995 में तत्कालीन समाजवादी पार्टी सरकार ने उर्दू अनुवादकों की भर्ती की थी। इनकी तैनाती मौजूदा उत्तर प्रदेश वाले क्षेत्रों में ही होनी थी। इतना ही नहीं इन कर्मचारियों की तैनाती तदर्थ व्यवस्था पर की गई थी। इनका कार्यकाल 6 महीने का ही रखा गया था. जिसके बाद फरवरी 1996 में इनकी सेवाएं समाप्त होनी थी। लेकिन उर्दू अनुवादकों की सेवाएं जारी रखी गईं

 

उर्दू अनुवादक अपनी तैनाती को बरकरार रखने के लिए कोर्ट भी गए जहां से इन्हें कुछ समय के लिए स्थगन भी मिला। इसके बाद उत्तराखंड अलग राज्य के रूप में स्थापित हुआ। करीब 150 से 200 उर्दू अनुवादक उत्तराखंड के विभिन्न विभागों में तैनात हो गए। चौंकाने वाली बात यह है कि विकेश नेगी को दी गई सूचना के अनुसार इन कर्मचारियों की भर्ती गढ़वाल, कुमाऊं या बुंदेलखंड क्षेत्र के लिए नहीं की गई थी।

 

उत्तराखंड में उर्दू अनुवादक सबसे ज्यादा पुलिस विभाग में तैनात हैं। इसके अलावा आबकारी और जिला अधिकारी कार्यालयों में भी उनके द्वारा सेवाएं दी जा रही हैं। विकेश नेगी कहते हैं कि पुलिस महानिदेशक कार्यालय की तरफ से 52 ऐसे कर्मचारियों की सूची दी गई है। इसी तरह वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के कार्यालय और जिलाधिकारी कार्यालय से भी सूची दी गई हैं। सीधे तौर पर 1996 में इनकी सेवाएं खत्म होने की जानकारी से जुड़ा पत्र भी दिया गया है. लेकिन हैरानी की बात यह है कि इसके बावजूद यह कर्मचारी अब भी काम कर रहे हैं।

 

तो आबकारी आयुक्त का यह बयान अपने आप में काफी चौंकाने वाला है. क्योंकि जिन कर्मचारियों को नौकरी करते हुए 23 साल बीत चुके हैं, उन पर अब भी विभाग को स्थिति स्पष्ट नहीं है। यह तब है जब इन कर्मचारियों की नियुक्ति को लेकर कई बार मुख्यमंत्री दरबार तक भी शिकायत हो चुकी है। लेकिन ना तो उन कर्मचारियों की नियुक्ति को कानूनी रूप से सही बताया गया है और ना ही गलत।

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!