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जल जीवन मिशन से आधा करोड़ खर्च पानी का बूंद नहीं ? उत्तरकाशी जिले भर में जल जीवन मिशन योजना में भारी भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे ग्रामीण !

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जल जीवन मिशन से आधा करोड़ खर्च पानी का बूंद नहीं।।उत्तरकाशी जिले भर में जल जीवन मिशन योजना में भारी भ्रष्टाचार के आरोप।।

जल जीवन मिशन के भ्रष्टाचार के खिलाफ “गांव बचाओ आंदोलन जन संगठन” की लड़ाई जारी।।

उत्तरकाशी 01, जुलाई। पीएम नरेंद्र मोदी का ड्रीम ड्रीमप्रोजेक्ट “जल जीवन मिशन योजना जिले भर में सवालों के घेरे में है। आलम यहां है जिले भर के दर्जनों योजनाओं में भ्रष्टाचार के आरोप लगाया जा रहे हैं।
ताज़ा मामला जिला मुख्यालय से सटे डांग गांव ग्रामीणों ने जल जीवन मिशन योजना में भारी भ्रष्टाचार के खिलाफ बीते
14वें दिनों से उत्तरकाशी के कलेक्ट्रेट परिसर में क्रमिक अनशन चल रहा है।


आपको बता दें कि जिला मुख्यालय से सटे डांग गांव में जल जीवन मिशन योजना से लगभग 51 लाख टेंक बना दिया और कनेक्शन भी दे दिए ,लेकिन मैन लाईन से कनेक्ट नहीं किया है जिससे आधा करोड़ खर्च के बावजूद ग्रामीणों को पानी नहीं मिल पा रहा है।
ग्रामीणों ने “गांव बचाओ आंदोलन” (ग्राम स्वराज की स्थापना के लिए एकजुट हुए गांवों का जनसंगठन की मुहीम में कई अन्य नये गांव भी शामिल हो गए।
जैसे-जैसे ग्रामीण अपने खेतों की रोपाई के कार्य को निपटाते जा रहे हैं, वैसे-वैसे ग्रामीणों में गांव बचाओ आंदोलन जनसंगठन द्वारा शुरू की गई भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहीम में शामिल होने का उत्साह बढ़ता ही जा रहा है।
डुंडा ब्लॉक के पनोथ (भंडारस्यूं), खालसी(चिन्यालीसौड़), तोलीगाड (बोंगा), कलां, खरवां(चांदपुर) , मांडौं, मानपुर, गिण्डा, खरवां (बाड़ागड्डी) के ग्रामीणों के अलावा दो न्यू गांव ऊपरीकोट और भरांण गांव के ग्रामीण भी “गांव बचाओ आंदोलन” जनसंगठन में शामिल हुए और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने का संकल्प लिया।

गौरतलब है कि पनोथ गांव में 1.69 करोड़ की जल जीवन मिशन के तहत रुपए खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन पानी की समस्या जस की तस बनी हुई है।इसी तरह खालसी(चिन्यालीसौड़), तोलीगाड (बोंगा), कलां, खरवां(चांदपुर) , मांडौं, मानपुर, गिण्डा, खरवां, ऊपरीकोट और भरांण गांव सभी जगह जल जीवन मिशन के तहत लाखों रुपए खर्च किए जा चुके हैं। लेकिन, सभी गांवों में पानी की समस्या वैसी ही बनी हुई है जैसे पहले थी।

18 जून 2024 को एक गांव डांग द्वारा शुरू किए गए इस संघर्ष में अब कई अन्य गांव शामिल हो चुके हैं।
अब तक भले ही प्रशासन की पूरी तरह नींद नहीं खुली है लेकिन प्रशासन के पसीने जरूर छूटने लगे हैं।

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