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उत्तरकाशी: सात गांवों के चुनाव बहिष्कार से सवालों के घेरे में डबल इंजन की सरकार ।।

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उत्तरकाशी: सात गांवों के चुनाव बहिष्कार से सवालों के घेरे में डबल इंजन की सरकार ।।

उत्तरकाशी 21, अप्रैल। लोकसभा सीटों के लिए शुक्रिया मतदान संपन्न हो चुका है। 2014 और 2019 की तुलना में 2024 के इस चुनाव में मतदान में गिरावट रहा है। इस कम मतदान का किसे फायदा होगा और किसे कितना नुकसान होने वाला है इसे लेकर तमाम तरह की चर्चाएं जारी है लेकिन भाजपा व कांग्रेस के द्वारा इस कम मतदान को लेकर अपने—अपने फायदे के दावे किए जा रहे हैं परंतु बेचैनी नेताओं के चेहरे पर साफ झलक रही है।

राजनीतिक दलों और प्रशासन द्वारा मतदान का प्रतिशत बढ़ाने के लिए तमाम कोशिशें की गई मगर यह कोशिशे धरी की धरी रह गई। बात उत्तरकाशी जनपद की करें तो
यहां पुरोला और गंगोत्री विधानसभा को मिला कर कुल सात गांवों के लोगों ने चुनाव का बहिष्कार किया। इन में पुरोला विधानसभा के लिवाड़ी में 583 मतदाता , बलाडी गांव में 371 मतदान , खांसी गांव में कुल 295 मतदाता , मोरी पोखरी में 183 मतदाताओं में महज एक वोट भोजन माता का पड़ा, वहीं देवती में 185 मतदाता है यहां भी कुल 07 वोट पड़े, इन सब गांव में सड़क को लेकर ग्रामीणों ने चुनाव का बहिष्कार किया। इधर गंगोत्री विधानसभा के सेंकू गांव में 254 महज़ एक ग्राम प्रहरी सहित कुल 11 मतदाताओं ने अपने मत का प्रयोग किया। उधर स्याबा गांव में 289 में से एक मत बीएलओ ने डाला जबकि ग्रामीणों ने चुनाव बहिष्कार ही रखा। गौरतलब है कि पुरोला ओर गंगोत्री दो विधानसभाओं में इन सात गांव के ग्रामीणों द्वारा लोकसभा चुनाव बहिष्कार से करने से डबल की इंजन सरकार पर
सवाल उठने लगे हैं।

यूं तो यमुनोत्री विधानसभा में भी कम मतदान रहा । यहां बड़ी संख्या में जो लोग वोट डालने नहीं पहुंचे वह किस पार्टी के वोटर रहे होंगे और इसका पार्टी को कितना नुकसान होगा और दूसरी पार्टी को इसका कितना फायदा होगा इसका चुनाव परिणाम पर गंभीर असर देखने को मिल सकता है।

अभी सभी दल खास तौर से भाजपा , और कांग्रेस इसकी समीक्षा करने में जुटे हुए हैं कि क्या कारण रहा इस बार मतदाताओं की इस उदासीनता का। अगर यह सत्ता से निराशा के कारण हुआ है तो इसका भाजपा को नुकसान होने की संभावना है। निर्दलीय प्रत्याशी की रैलियां में हमने जिस तरह की भीड़ उमड़ती देखी थी वह क्या था? क्या एक बूथ 10 यूथ वाली भाजपा अपने वोटरों को बूथ तक नहीं ला सकी। ऐसे तमाम सवाल उमड़—घुमड़ रहे हैं। एक महत्वपूर्ण तथ्य जो सामने आया है वह यह है कि मतदान को लेकर शहरी मतदाता ही उदासीन रहे हैं ग्रामीण क्षेत्रों में मतदान औसतन अच्छा रहा है। इस बार नए वोटर सूची में भी युवा काफी शामिल हुए थे इसके बाद भी मतदान प्रतिशत में आई, इस कमी ने यमुनोत्री में नेताओं को परेशान कर दिया है। इसका कितना नफा नुकसान होता है और किसे होता है इसका सही जवाब 4 जून की मतगणना के बाद ही मिल सकेगा।

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क्या कहना है गांव की प्रधान का……

देवती गांव की प्रधान बीना सजवाण का कहना है कि आजादी के 70 वर्ष बाद हमारी गांव तक सड़क नही पहुंची लगातार सरकार और प्रशासन से ग्रामीण मांग कर रहे है । गर्भवती महिला को सामुदाय स्वास्थ्य केंद्र मोरी में पैदल चलकर अब तक तीन महिलाओं की मौत हो गई चुकी है जिस कारण ग्रामीणों का चुनाव का पूर्ण रूप से बहिष्कार किया है ।

 

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चार जून को विधायकों का अब ऐसे तय होगा कद

लोकसभा चुनाव में विधानसभा क्षेत्र वार मतदान को आधार बनाकर विधायकों का आंकलन किया जाता है। यमुनोत्री विधानसभा में निर्दलीय विधायक ने भाजपा को अपना समर्थन दिया, लेकिन कम मतदान एवं निर्दलीय प्रत्याशी बॉबी पंवार की हवा से यमुनोत्री में नेताओं ने हाथ खड़े कर दिए। बरहाल
लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार-जीत का दारोमदार काफी हद तक उनके विधायकों पर होता है। विधायक अपनी विधानसभा क्षेत्र में अधिक से अधिक वोटरों को पोलिंग बूथ तक लाकर मतदाताओं पर अपनी पकड़ को प्रदर्शित करने का प्रयास करते हैं।
इस बार चुनाव में ज्यादातर विधान सभा क्षेत्रों में मतदान घटा है। इससे कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। वहीं राजनीतिक जानकारों का कहना है कि आगामी चार जून को चुनाव परिणाम आने पर ही विधायकों के कद का फैसला होगा।

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