नेहरू पर्वतारोहण संस्थान में भ्रष्टाचार का नगा नाच ? संस्थान के उच्च अधिकारियों की नाकामी से संस्थान की छवि हो रही धूमिल ….
Corruption is rampant at the Nehru Mountaineering Institute. The failure of senior officials is tarnishing the institute's image.

नेहरू पर्वतारोहण संस्थान में भ्रष्टाचार का नगा नाच
संस्थान के उच्च अधिकारियों की नाकामी से संस्थान की छवि हो रही धूमिल….
नेहरू पर्वतारोहण संस्थान, उत्तरकाशी – जो कभी देश के प्रतिष्ठित पर्वतारोहण प्रशिक्षण केंद्र के रूप में जाना जाता था – आज भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद की अंधेरी गलियों में भटकता प्रतीत हो रहा है। जिस संस्थान से युवाओं को साहस, अनुशासन और देशसेवा की प्रेरणा मिलनी चाहिए थी, वहीं अब घोटालों और पक्षपात के गंभीर आरोप लग रहे हैं।
साल 2005 में संस्थान के भीतर क्यूरेटर का एक पद व्यक्ति विशेष के लिए विशेष रूप से निर्मित किया गया – यह आरोप अब जांच की मांग कर रहा है। हैरानी की बात यह है कि जिस व्यक्ति को यह पद मिला, वह पहले संस्थान में एक साधारण पोर्टर के रूप में कार्यरत था। मात्र चार वर्षों में वह इतनी योग्यता कैसे अर्जित कर गया कि उसके लिए क्यूरेटर जैसी तकनीकी और विशेषज्ञता की मांग रखने वाली पोस्ट निकाली गई – यह रहस्य ही बना हुआ है।
विशेष चिंता की बात यह है कि यह संस्थान सीधे भारत सरकार के अधीन आता है और इसका संचालन सेना के कर्नल रैंक के अधिकारी करते हैं। इसके बावजूद यदि इस प्रकार की अनियमितताएं खुलकर सामने आ रही हैं, तो यह न केवल संस्थान की साख को धूमिल कर रहा है, बल्कि पूरे प्रशासनिक ढांचे पर भी सवाल खड़े करता है।
वेतन में अनियमितता और पक्षपात की मिसाल
उप सचिव एस. एस. वल्दिया द्वारा 2011 में जारी आदेश के अनुसार, क्यूरेटर के पद का पुनरीक्षण कर उसका वेतनमान ₹6500 से बढ़ाकर ₹10500 किया गया, जिसे बाद में ग्रेड पे ₹4200 के साथ जोड़ा गया। आज वही व्यक्ति ₹1.55 लाख से अधिक मासिक वेतन प्राप्त कर रहा है। यह किस आधार पर हुआ? कौन अधिकारी इसके लिए जिम्मेदार है? और इससे भी महत्वपूर्ण – क्या उक्त व्यक्ति के पास PG इन म्यूजियम साइंस जैसी आवश्यक शैक्षिक योग्यता थी भी या नहीं?
इसके विपरीत, संस्थान में कई कर्मचारी ऐसे भी हैं जो दिन-रात मेहनत कर 8 से 12 घंटे की ड्यूटी निभा रहे हैं, लेकिन उनका मानदेय वर्षों से जस का तस बना हुआ है। यह सीधा-सीधा शोषण है और संस्थान के भीतर व्याप्त असमानता को उजागर करता है।
प्रशासनिक उदासीनता या मिलीभगत?
जिस तरह से किसी प्रकार की जांच या विभागीय कार्रवाई अब तक नहीं हुई, उससे यह संदेह और गहरा होता जा रहा है कि कहीं संस्थान के उच्च अधिकारी स्वयं इस गड़बड़ी में शामिल तो नहीं? यदि ऐसा नहीं है, तो अब तक कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाया गया?
वर्तमान में संस्थान का नेतृत्व कर रहे कर्नल हेमचन्द्र चाहें तो इस भ्रष्ट व्यवस्था पर नकेल कस सकते हैं, लेकिन यह तभी संभव होगा जब राजनीतिक और आंतरिक दबावों से ऊपर उठकर निष्पक्षता से कार्य किया जाए।
नेहरू पर्वतारोहण संस्थान की छवि को बचाना है तो भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और प्रशासनिक लापरवाही पर तुरंत अंकुश लगाना होगा। अगर समय रहते इन मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया गया, तो आने वाले समय में यह संस्थान बंद होने की कगार पर पहुंच सकता है – और यह पूरे देश के लिए एक अपूरणीय क्षति होगी।
अब वक्त आ गया है कि जनता, मीडिया और सरकार मिलकर इस संस्थान को फिर से उसकी खोई हुई गरिमा दिलाने के लिए आगे आएं। दोषियों की पहचान कर सख्त कार्रवाई की जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि संस्थान एक बार फिर से योग्यता, पारदर्शिता और देशसेवा का प्रतीक बन सके।