उत्तरकाशी में कचडू देवता मन्दिर जहां आज भी देना पड़ता है सीमा शुल्क

उत्तरकाशी : उत्तराखंड को देव भूमि यूं ही नहीं कहा जाता यह अपने कहीं रहस्यों के लिए जानी जाती है । हम बात कर रहे हैं उत्तरकाशी जिले के डुण्डा में गंगोत्री हाईवे पर स्थित कचडू देवता मन्दिर का । कहा जाता है कि 150 सौ वर्ष पहले कचडू नामक युवक दीपावली के लिए हिमाचल से अपनी बहिन शोभना के साथ उसके ससुराल बरसाली गांव में आ रहा था । डुंडा के पास रास्ते में वह आराम करने के लिए बैठ गया और बांसुरी बजाने लगा इस बीच उसे “वन परियों” (आछरियों) ने हर लिया और अपने साथ चलने को कहने लगी जिस पर कचडू ने अपनी बहिन को अपने गांव ले जाने के बाद आने का परियों से वादा किया था।

वह अपनी बहिन को अपने गांव ले गया समय आने पर परियों ने उसे साथ चलने को कहा और वह परियों के साथ चला गया पर उसने शर्त रखी कि वह अपनी मां के हर काम में हाथ बंटायेगा जैसे खेतों का हल चलाना जिस पर परियों ने कहा कि जिस दिन तुम्हें कोई भी मनुष्य देख लेगा उसके बाद तुम कुछ नहीं कर पाओगे। कहा जाता है कि कचडू के मरने के बाद भी वह चुपके से रात को अपने घर के सारे काम करने लगा अचानक गांव वालों को इसकी भनक लगी और गांव वालों ने उनकी माता को सारी बात बताई उनकी माता ने सच जानने के लिए छुप गयी इस बीच कचडू मनुष्य भेष में घर के कार्य कर रहा था तभी मां ने कचडू को पकड़ने की कोशिश की जिसके बाद कचड़ू अदृश्य हो जाता है और कहता है कि ये तूने क्या किया अब मैं तेरे काम नहीं कर पाऊंगा। लेकिन देवता बनकर लोगों के कष्ट दूर करूंगा।आज भी लोग कचडू को अपनी खुशहाली के लिए पूजते हैं।

कचडू देवता के पूजारी भगवती बहुगुणा बताया कि आज भी लोग कचडू को अपनी खुशहाली के लिए पूजते हैं। यहां बकरे की बलि भी दी जाती है । लोग यहां मन्नत मांगने आते हैं जब लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है तब कचडू देवता की पूजा करने आते हैं। यदि यूं कहें कि डुंडा के पास कचडू देवता के मंदिर से जो गुजरता है तो उसे सीमा शुल्क देना पड़ता है।
। आपको बताते चले कि आज भी कचड़ू देवता के अवशेष दिखाई देते है । जैसे कचड़ू देवता सोते हुए ओर उसकी तलवार , घोड़े के अवशेष पत्थरों कर नजर आते है ।