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नेहरू पर्वतारोहण संस्थान : जवाबदेही के अभाव में भ्रष्टाचार की ऊँचाइयाँ

नेहरू पर्वतारोहण संस्थान : जवाबदेही के अभाव में भ्रष्टाचार की ऊँचाइयाँ

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उत्तरकाशी। उत्तरकाशी स्थित नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (Nehru Institute of Mountaineering – NIM), जो देश का गौरव कहलाता है, आज गंभीर आरोपों के घेरे में है। लंबे समय से संस्थान में जवाबदेही और उच्च प्रशासनिक नियंत्रण के अभाव ने इसे भ्रष्टाचार का अड्डा बना दिया है। सरकारी धन के खुले दुरुपयोग, बिना निविदा के निर्माण कार्यों और नियमों की खुलेआम अवहेलना ने संस्थान की साख पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है।

नेहरू पर्वतारोहण संस्थान देश की पर्वतारोहण शिक्षा का प्रतीक है। लेकिन यदि यही संस्थान भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और जवाबदेही की कमी का उदाहरण बन जाए, तो यह न केवल उत्तराखंड बल्कि पूरे देश के लिए शर्मनाक है। अब समय आ गया है कि राज्य सरकार, खेल निदेशालय और केंद्र सरकार इस मामले की स्वतंत्र जांच कराएँ, ताकि संस्थान की गरिमा और पारदर्शिता पुनः स्थापित की जा सके।

 

प्रशासनिक शिथिलता और लापरवाही

 

वर्तमान में स्वास्थ्य लाभ पर चल रहे कर्नल अंशुमान भदौरिया के चार्ज में, कर्नल हेमचंद्र को कई अनियमितताओं की जानकारी होने के बावजूद अब तक किसी ठोस कार्रवाई का अभाव दिखा है। यह स्थिति दर्शाती है कि संस्थान में प्रशासनिक अनुशासन और जवाबदेही का पूर्णत: अभाव है।

 

बिना निविदा के निर्माण कार्य

 

सूत्रों के अनुसार, संस्थान परिसर में ‘मांडा’ नामक तीन मंजिला इमारत बिना किसी निविदा प्रक्रिया और नक्शा स्वीकृति के निर्माण कर दी गई है। यह सीधा-सीधा लोक निर्माण और वित्तीय नियमों का उल्लंघन है। बताया जा रहा है कि इन निर्माण कार्यों की जानकारी खेल विभाग निदेशालय तक भी नहीं पहुँची, जिससे साफ़ है कि पारदर्शिता का अभाव है और “विकास कार्य” के नाम पर सरकारी धन की बंदरबांट की जा रही है।

 

आपदा ग्रस्त क्षेत्र में अनियंत्रित निर्माण

 

उत्तरकाशी एक आपदा संवेदनशील जिला है, जहाँ निर्माण कार्यों पर विशेष सतर्कता की आवश्यकता होती है। इसके बावजूद, संस्थान परिसर में अब तक पाँच नई इमारतें खड़ी की जा चुकी हैं — वह भी बिना किसी पर्यावरणीय या प्रशासनिक स्वीकृति के। यह गंभीर लापरवाही न केवल सरकारी नियमों का उल्लंघन है, बल्कि आपदा प्रबंधन की भावना के भी विपरीत है।

 

कागजी हेराफेरी और काल्पनिक कर्मचारियों का खेल

 

संस्थान में बैठी भ्रष्ट लॉबी ने कथित रूप से एक “कागजी कर्मचारी” को नियुक्त कर रखा है, जिसका न तो कोई आधिकारिक रिकॉर्ड है और न ही कार्य विवरण। इसके बावजूद, उसे हर महीने ₹60,000 वेतन के रूप में दिए जा रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, एक वर्ष में इस माध्यम से लाखों रुपये निजी खातों में स्थानांतरित किए गए हैं। और सरकारी आवास दिया गया है । जिस पर सवालिया निशान खड़े हो रहे है।

 

राज्य सरकार के आदेशों की अवहेलना

 

संस्थान के रजिस्ट्रार के कथन के अनुसार, “राज्य सरकार के आदेशों का पालन संस्थान में नहीं किया जा सकता।” यह बयान न केवल चौंकाने वाला है, बल्कि यह सवाल भी उठाता है कि क्या केंद्र और राज्य के बीच समन्वयहीनता का खामियाजा सरकारी धन और जनता के विश्वास को भुगतना पड़ रहा है?

 

मौन प्रशासन और कर्मचारियों का शोषण

 

छोटे कर्मचारियों में असंतोष बढ़ रहा है। उन्हें उनके मौलिक अधिकारों से वंचित किया जा रहा है और आपसी फूट डालकर उच्च अधिकारी अपने निजी स्वार्थ साध रहे हैं। शासन और निदेशालय तक सूचना पहुँचने के बावजूद अब तक न तो किसी अधिकारी पर एफआईआर हुई है, न ही किसी जांच का आदेश जारी हुआ है।

 

संग्रहालय के संचालन की जिम्मेदारी जिस व्यक्ति को सौंपी गई है, उसने आज तक किसी भी पर्यटक को संग्रहालय से संबंधित कोई जानकारी प्रदान नहीं की है। प्राप्त सूत्रों के अनुसार, वह व्यक्ति रजिस्ट्रार और सूचना अधिकारी के पद पर दावा करने में ही व्यस्त रहता है तथा इन पदों के लिए अलग से वेतन भी प्राप्त कर रहा है।

जबकि प्रत्येक पर्यटक से प्रवेश शुल्क के रूप में धनराशि वसूली जाती है, संग्रहालय का वास्तविक संचालन एक दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी द्वारा किया जा रहा है। यह स्थिति संग्रहालय प्रबंधन की गंभीर अनियमितता को दर्शाती है।

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