
श्रद्धांजलि की चढ़ाई: एक अधूरी कहानी का पूर्ण समापन
04 अक्टूबर 2025 को नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (NIM) की टीम ने जिस साहस और संकल्प से माउंट द्रौपती का डांडा-2 (5670 मीटर) पर सफल आरोहण किया, वह केवल एक पर्वत की चोटी पर विजय नहीं थी — वह एक अधूरी कहानी का समापन था, एक शौर्यपूर्ण श्रद्धांजलि थी उन 29 पर्वतारोहियों के लिए, जो वर्ष 2022 में इसी चोटी की गोद में सदा के लिए सो गए।
यह चढ़ाई एक भावनात्मक यज्ञ थी, जिसमें NIM के प्रशिक्षकगण, अधिकारी और प्रशिक्षु श्रद्धा और साहस की आहुति देकर निकले थे। अभियान का नेतृत्व NIM के प्रधानाचार्य कर्नल हेमचंद्र सिंह ने किया — एक ऐसा नाम, जिसने न केवल जोखिम उठाया बल्कि संस्थान की गरिमा को पुनः स्थापित किया। उनके साथ कैप्टन संतोष कुमार, श्री विनोद गुसांई, श्री सौरव सिंह, श्री आजाद राणा, श्री अंशुल गल्ता और प्रशिक्षुओं की टीम थी — जो न केवल प्रशिक्षक थे, बल्कि श्रद्धांजलि के वाहक भी।
यह अभियान शुद्ध रूप से तकनीकी, रणनीतिक और भावनात्मक दृष्टि से अद्वितीय रहा। लेकिन इस चढ़ाई की सफलता केवल वर्तमान की वीरता नहीं दर्शाती, यह अतीत की विफलताओं पर भी एक करारी टिप्पणी है।
2022 की त्रासदी — लापरवाही की कीमत
तीन वर्ष पूर्व, जब NIM की ट्रेनिंग टीम द्रौपती का डांडा-2 पर फंसी थी और प्राकृतिक आपदा ने उन्हें निगल लिया था, तब कई सवाल उठे थे। सूत्रों की मानें तो उस समय अभियान का नेतृत्व करने वाला कोई वरिष्ठ, अनुभवी अधिकारी नहीं था। रजिस्ट्रार ने अनुमत संख्या से अधिक लोगों को भेजने की अनुमति दी, जिससे जोखिम कई गुना बढ़ गया। गंगोत्री विधायक सुरेश चौहान ने उच्च स्तरीय जांच की मांग की थी, लेकिन अधिकारियों की मिलीभगत ने मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया।
यह घटना केवल एक ‘दुर्घटना’ नहीं थी — यह सिस्टम की लापरवाही, प्रशासनिक शिथिलता और जवाबदेही के अभाव का नतीजा थी। उस समय यदि कर्नल हेमचंद्र जैसे अधिकारी वहां होते, तो शायद त्रासदी टाली जा सकती थी।
नया नेतृत्व — नई दिशा
2025 की इस विजय ने साबित कर दिया कि जब नेतृत्व सक्षम, उत्तरदायी और संकल्पशील हो, तब न केवल चोटियां फतह होती हैं, बल्कि संस्थानों का पुनर्जीवन भी होता है। कर्नल हेमचंद्र सिंह ने न केवल शिखर पर पहुंचकर श्रद्धांजलि दी, बल्कि यह संदेश भी दिया कि पर्वतारोहण केवल खेल नहीं, बल्कि राष्ट्रीय कर्तव्य और चरित्र निर्माण का माध्यम है।
सरकार को चाहिए कि ऐसे अधिकारियों को संस्थान की स्थायी और निर्णायक भूमिका में रखा जाए। पर्वतारोहण केवल रज्जु और बर्फ की कुल्हाड़ी से नहीं, नेतृत्व, अनुशासन और दूरदर्शिता से जीता जाता है।
द्रौपती का डांडा-2 पर यह विजय भारत के पर्वतारोहण इतिहास में एक मील का पत्थर है। यह उन आत्माओं को सच्ची श्रद्धांजलि है जो वहां शहीद हुए, और एक प्रेरणा है आने वाली पीढ़ियों के लिए। लेकिन यह विजय हमें यह भी याद दिलाती है कि यदि नेतृत्व में जवाबदेही हो, तो हर त्रासदी को टाला जा सकता है।
NIM की यह चढ़ाई हमें यह भी सिखाती है कि श्रद्धांजलि केवल फूल चढ़ाने से नहीं होती — बल्कि उनके अधूरे सपनों को पूरा करने से होती है।