उत्तराखंडस्वास्थ्य

Health: देहरादून में 75% लोग विटामिन डी की कमी के हैं शिकार

Listen to this article

Health: 75% people in Dehradun suffer from Vitamin D deficiency

देहरादून-27 जनवरी, 2023: आंकड़ों के अनुसार, देशभर में विटामिन डी की कमी से ग्रस्त लोगों की संख्या लगभग 76% है. यह डाटा टाटा mg1 लैब्स द्वारा भारत के 27 शहरों में 22 लाख लोगों पर किये गये परीक्षण के बाद सामने आया है.

उल्लेखनीय विटामिन डी की कमरता से जूझ रहे पुरुषों की संख्या 79% है तो वहीं 75% महिलाओं में विटामिन डी की कमी पाई ग‌ई. वडोदरा

(89%) और सूरत (88%) जैसे‌ शहरों में ऐसे लोगों की संख्या सबसे अधिक पाई गई, तो वहीं देशभर के सभी शहरों में की गई जांच से हासिल डाटा के मुताबिक, तमाम शहरों के मुक़ाबले दिल्ली-एनसीआर (72%) में विटामिन डी की कमरता के सबसे कम मामले देखने को मिले।
उल्लेखनीय है कि टाटा 1mg के एक विश्लेषणात्मक डाटा में‌ पाया गया है कि राष्ट्रीय औसत के मुक़ाबले अधिकतर युवाओं में विटामिन डी की कमतरता पाई गई. विटामिन डी की कमी से ग्रस्त होनेवालों में 25 साल से कम आयुवर्ग वाले लोगों की संख्या 84% जबकि 25-50% आयुवर्ग के लोगों की संख्या 81% है।

विटामिन डी के स्तर को जांचने‌ के लिए मार्च से अगस्त के बीच अखिल भारतीय स्तर पर किये गये परीक्षण से प्राप्त डाटा के मुताबिक:

लिंग – प्रतिशत

पुरुष – 79%
महिला – 75%
आयुवर्ग – प्रतिशत

25 साल से कम
84%
25% – पुरुष – 79%
महिला – 75%
40%
81%
देश के कुल 27 शहरों में विटामिन डी की कमरता के मामलों को लेकर शहर-दर-शहर एक नज़र:

शहर.

विटामिन की कमतरता

वडोदरा – 89%
सूरत – 88%
अहमदाबाद – 85%
नागपुर -84%
भुवनेश्वर -83%
नाशिक -82%
पटना -82%
विशाखापत्तनम- 82%
रांची -82%
जयपुर -81%
चेन्नई -81%
भोपाल -81%
इंदौर -80%
पुणे -79%
कोलकाता – 79%
बनारस – 79%
मुम्बई – 78%
इलाहाबाद -78%
लखनऊ -78%
कानपुर -77%
बंगलुरू -77%
आगरा -76%
हैदराबाद -76%
चंडीगढ़ -76%
देहरादून -75%
मेरठ -74%
दिल्ली NCR -72%
उल्लेखनीय है कि विटामिन डी को ‘सनशाइन’ विटामिन के नाम से भी जाना जाता है जो व्यक्ति के समग्र विकास, मेटाबॉलिज़्म, रोग प्रतिरोधक शक्ति और लोगों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहद आवश्यक होता है. शरीर में विटामिन डी की कमी से लोगों के प्रोस्टेट कैंसर, डिप्रेशन, डायबिटीज़,‌ रियूमेटॉयड आर्थराइटिस और रिकेट्स जैसी बिमारियों के शिकार होने का ख़तरा रहता है।

टाटा 1mg लैब्स के वीपी डॉ. राजीव शर्मा कहते हैं, “खान-पान को लेकर लोगों की बदलती आदतों, घरों में रहने संबंधित जीवनशैली में बदलाव और सूरज की किरणों से कम होते एक्पोजर के चलते विटामिन डी की कमतरता के मामलों में तेज़ी से वृद्धि देखने को मिल रही है।

किशोर युवक-युवतियों में विटामिन डी की कमरता की मुख्य वजहों में विटामिन डी से लैस खाने का कम सेवन प्रमुख है. इनमें फ़ोर्टिफ़ाइड खाद्य पदार्थों और तैलीय मछलियों का सेवन ना करना अथवा कम मात्रा में सेवन करना शामिल है. ठंड के मौसम में सूरज की किरणों से बचने अथवा धूप में ना निकलने‌ की आदत को भी विटामिन डी की कमी का एक प्रमुख कारण माना जा सकता है. महिलाओं में अनियोजित प्रेग्नेंसी और दो प्रेग्नेंसी में उचित अंतराल ना रखना और खान-पान का अनियमित होना भी महिला और बच्चे दोनों के लिए विटामिन डी की कमी का बड़ा कारण साबित होता है, जिसे बचने की सख्त ज़रूरत है।

टाटा 1mg लैब्स के क्लिनिकल हेड डॉक्टर प्रशांत नाग कहते हैं, “मोटापे, मैल-एब्सॉरप्शन सिंड्रोम, हड्डियों के पिघलने (ओस्टिओमेलाकिया) अथवा टीबी के इलाज के मामलों में विटामिन डी के लेवल की नियमित रूप से जांच आवश्यक हो जाती है. उल्लेखनीय है कि साल में एक या दो बार किये जानेवाले फ़ुल-बॉडी चेक-अप के साथ-साथ शरीर में विटामिन डी के लेवल संबंधित जांच भी की जानी चाहिए. ग़ौरतलब है कि पांच साल से कम उम्र के बच्चे, गर्भवती व शिशुओं को दूध पिलानेवाली महिलाएं, किशोर लड़कियां व युवतियां, 65 साल से ज़्यादा उम्र के लोग और सूरज की किरणों से ज़्यादा संपर्क में नहीं आनेवाले लोग बड़े पैमाने पर विटामिन डी की‌ कमतरता का शिकार होते हैं।

मानव त्वचा विटामिन डी के लिए कोलेस्ट्रॉल के एक प्रकार के अग्रगामी के रूप में कार्य करती है. यह जब सूरज से निकलनेवाली UV-B रेडिएशन से एक्सपोज़ होती है तो विटामिन डी में तब्दील हो जाती है. सूरज की किरणों से संतुलित एक्सपोज़र और अंडे की जर्दी, तैलीय मछलियों, रेड मीट, फ़ोर्टिफ़ाइड खाद्य पदार्थ आदि के सेवन से विटामिन डी में आनेवाली कमी को कारगर तरीके से रोका जा सकता है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!